By Alka
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Dev Diwali को सभी देव गण दीपावली मनाने के लिए धरती पर आते हैं. इसीलिए इसे देव दिवाली के रुप में जाना जाता है. देव दिवाली का यह पर्व मुख्य रूप से भगवान शिव की नगरी काशी में विधिवत रूप से मनाया जाता है. इस साल देव दिवाली कब है? और इसका धार्मिक महत्व क्या है? आइए जानते हैं.
भारत के सबसे प्रचीन नगर में मनाया जाता है Dev Diwali का पर्व
Dev Diwali भारत के सबसे प्राचीन और पवित्र नगरों में से एक वाराणसी में मनाया जाने वाला एक अद्वितीय और दिव्य पर्व है. इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत ज्यादा है. इस दौरान गंगा घाटों के किनारे हजारों दीप जलाकर असुरों पर देवताओं की विजय का उत्सव मनाया जाता है. जो अंधकार पर प्रकाश की और धर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है.
15 नवंबर को मनाई जाएगी Dev Diwali
साल 2024 में कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 15 नवंबर की सुबह 6:19 से होगी और देर रात 2:58 पर समाप्त हो जाएगी. उदया तिथि 15 नवंबर को ही मानी जाएगी इसलिए देव दीपावली का पर्व 15 नवंबर को मनाया जाएगा.
Dev Diwali और दीपावली में ये है अंतर
हालांकि देव दीपावली दीपों का त्योहार है लेकिन देव दीपावली और दीपावली दोनों में एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि दीपावली मुख्य तौर पर मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए मनाई जाती है. माना जाता है कि भगवान श्री राम इस दिन रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अपने घर अयोध्या आए थे, इसलिए भी दीपावली मनाई जाती है.
Dev Diwali का संबंध देवताओं के साथ है. इसका संबंध भगवान शिव के द्वारा त्रिपुरासुर पर विजय प्राप्त करने से है. इसीलिए भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता है. अर्थात् तीन राक्षसों के नगरों के संहारक. इस दिन भक्त अपने घरों में दीपक जलते हैं ताकि देवताओं को प्रसन्न किया जा सके.
गंगा नदी के घाटों पर भगवान शिव की विशेष आराधना
देव दीपावली के दिन लोग अपने घरों को दीपों और रंगोली से सजाते हैं. लोग पूजा का आयोजन करते हैं और भगवान शिव की आराधना अवश्य की जाती है. इस दिन गंगा नदी के घाटों पर और अन्य पवित्र जलाशयों में स्नान करने का भी अपना विशेष महत्व है.
Dev Diwali केवल धार्मिक उत्सव नहीं है बल्कि, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है. यह पर्व भाई-चारे और एकता का प्रतीक भी माना जाता है. Dev Diwali भले ही दीपावली से अलग है लेकिन इस पर्व का बहुत महत्व है. यह पर्व हमें सिखाता है कि अच्छाई हमेशा बुराई पर विजय प्राप्त करती है. इस दिन दीप जलाने का अर्थ है अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना.
Dev Diwali का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
Dev Diwali के विशेष पर्व में गंगा घाटों पर हजारों मिट्टी के दीपक जलाए जाते हैं. वाराणसी में गंगा के किनारे अलग-अलग घाटों पर दीपों की रोशनी का यह दृश्य अत्यंत अलौकिक और दिव्य होता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं. और इन सभी दीपों के प्रकाश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं.
पुण्य अर्जित करने का एक सबसे अहम माध्यम
गंगा आरती के दौरान विशेष प्रार्थनाएं और भगवान शिव का विशेष पूजन किया जाता है. इस अवसर पर भक्त गंगा नदी में स्नान करते हैं जिसे आत्म शुद्धि के प्रतीक के रूप में माना जाता है. इस दिन अन्न दान का बहुत ज्यादा महत्व है. अन्न दान पुण्य अर्जित करने का एक सबसे अहम माध्यम माना जाता है. देव दीपावली के दिन बनारस के सभी घाट दियों की रोशनी से जगमग होते हैं. ऐसी मान्यता है कि स्वयं देवता इन दीपों की रोशनी में स्वर्ग से धरती पर आते हैं.
अस्वीकरणः ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है. यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए Her Jankari उत्तरदायी नहीं है. ये लेख विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित है। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें/
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